लोकआस्था का महापर्व छठ की शुरुआत शुक्रवार 12 अप्रैल से हो रही है. शुक्रवार को पहले दिन नहाय खाय के साथ छठ पर्व की शुरुआत होगी. चैत्र महीने में मनाए जाने की वजह से इसे चैती छठ पर्व के नाम से जाना जाता है.
बिहार, उत्तरप्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में साल में दो बार छठ पर्व मनाया जाता है. एक बार छठ कार्तिक माह में दीपावली के छह दिन बाद और दूसरी बार चैत माह में मनाया जाता है.
कार्तिक माह के छठ के बारे में सभी लोग जानते हैं लेकिन उसकी अपेक्षा चैत माह की छठ के बारे में कम चर्चा होती है. जबकि चैती छठ की महिमा कार्तिक छठ से कहीं कम नहीं है. कार्तिक छठ का महत्व तो और बढ़ जाता है क्योंकि यह चैत नवरात्रि के दिनों में मनाया जाता है.
बहुत कठिन है चैती छठ की साधना
छठ पर्व को महापर्व कहा जाता है क्योंकि इसमें किया जाने वाला साधना बहुत कठिन है. वर्ती इस पर्व के दौरान 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखती हैं. चैत छठ भी ठीक इसी विधि से की जाती है लेकिन इस पर्व में किया जाने वाला साधना और कठिन है क्योंकि चैत माह में भीषण गर्मी रहती है. पारा चालीस के पास पहुंच जाता है. वैसे में दो तीन घंटे तक बिना पानी के रहना मुश्किल है वहां व्रती 36 घंटे तक बिना जल के रहती हैं.
कार्तिक छठ और चैत छठ में क्या अंतर है
कार्तिक छठ और चैती छठ भले ही साल के अलग-अलग महीनों में मनाए जाते हैं लेकिन इसके मनाने की विधि एक ही है. इस पर्व में भी नहाय खाय, खरना पूजा और फिर 36 घंटों का निर्जला उपवास कर अस्ताचलगामी और उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है. चैती छठ के मनाने के पीछे की मान्यता अलग जरूर है.
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित मार्कण्डेय दुबे चैती छठ की महिमा बताते हैं- चैत्र नवरात्रि के पहले दिन को सृष्टि का प्रथम दिन कहा जाता है. मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण पूरा किय था. जब उन्होंने संसार का निर्माण किया था तब यहां बहुत अंधेरा था. हर तरह जल ही जल था. इसी जल में योगमाया के बंधन में बंधे श्रीहरि शयन कर रहे थे.
चैती छठ 2024 डेट
छठ का महापर्व 4 दिन तक चलता है. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से इसकी शुरुआत होती है और समापन सप्तमी को होता है. इस साल चैती छठ 12 अप्रैल 2024 से शुरू होगा और समाप्ति 15 अप्रैल को होगी.
चैती छठ में सूर्य के साथ देवसेना की पूजा
ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड निर्माण के छठे दिन सौरमंडल का निर्माण किया. श्रीहरि के नेत्र खुलते ही सूर्य और चंद्रमा बना. तब योगमाया ने ब्रह्मा जी ब्राह्मी शक्ति से जन्म लिया. इस शक्ति का नाम देवसेना पड़ा.
देवसेना को सूर्य की पहली किरण कहा जाता है. सूर्य देव और देवसेना आपस में भाई-बहन हैं. संसार को प्रकाश की शक्ति छठवें दिन मिली. इसीलिए सूर्य देव और उनकी बहन देवसेना की पूजा छठवे दिन की जाती है. जिसे छठ व्रत कहा जाता है.
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